यू तो जिंदगी कई पन्नो, कई किस्सों और कितने ही उतार - चढाव से भरी है और इस जिंदगी में हर किसी का अपना अपना अनुभव और संघर्ष होता है। पर कुछ किस्सों के पहलू सभी की जिंदगी में एक जैसे होते है... कुछ अनुभव, कुछ लगाव, कुछ किस्से सभी की जिंदगी में एक से होते है... उनमे से एक है हमारी रफ़ कॉपी!
ये किस्सा उसी रफ़ कॉपी का है...
वही रफ़ कॉपी जिसके पन्ने तो खुरदुरे होते थे,
पर लिखावट उसी पर ज्यादा अच्छी होती थी।।
वही रफ़ कॉपी जिसके पन्नो का कलर तो बहुत बासी होता था,
पर पूरे बस्ते में वही सबसे अव्वल होती थी।।
वही रफ़ कॉपी जिसके पहले पन्ने पर सिर्फ हमारा नाम होता था,
और आखिरी पन्नो पर कुछ अजीब सी चित्रकारी, कुछ खेलो का जोड़-घटाना और थोड़ा बहुत सवालों का हिसाब-किताब होता था।।
वो रफ़ कॉपी जिसके पहले पन्ने को तो ऐसे सजाते थे, जैसे इसी में सारी विद्या छिपी होती थी।
और वही उसके आखिरी पन्ने पर ना जाने कितनी ही गलतियां और कितने ही खेलो की होड़ मची रहती थी।।
वही रफ़ कॉपी जिसपर कभी और कॉपीज की तरह कवर तो नही चढ़ाते थे।
पर सबसे जरूरी और अपने सारे सीक्रेट्स उसी कॉपी में छिपाते थे।।
वो रफ़ कॉपी जो हमारी कितनी ही गलतियों को खुद में समेटे रखता था।
वो रफ़ कॉपी जिसका वजन भी सारी कॉपीओ से कम ही होता था।।
वही रफ़ कॉपी जिसमे थोड़ा बड़े होने के बाद दिल का हाल भी लिखा जाता था। प्यार, गुस्सा और भी ना जाने क्या-क्या लिखा होता था। कोई पढ़ ना पाए इसलिए सब कोड भाषा में लिखते थे।
कई बार लिखकर बहुत कुछ हम काट दिया करते थे,
ज्यादा गुस्सा आने पर गोच-गोच के पन्ने को फाड़ ही दिया करते थे।
हा वही रफ़ कॉपी जिसमे कितने ही किस्सों को लिखकर अमर कर दिया था हमने।
वो राजा, मंत्री, चोर, सिपाही का हिसाब तक कर के रखा था हमने।।
बचपन के पहले अक्षर से शुरु हुई रफ़ कॉपी की कहानी ना जाने कितने चाहे अनचाहे किस्सों, कितने ही ना पूरे होने वाले सपनो और कितनी ही मोहब्बक्त, दुख और गुस्से हो खुद में समेट कर रखती थी... क्योंकि तब हमारे हर भाव के लिए वो रफ़ कॉपी ही थी जो राज़ को राज़ रखने में हमारा साथ देती थी।
पर अब वो रफ़ कॉपी जैसे कही खो सी गयी है
वो रफ़ कॉपी हमारे जीवन से बहुत दूर चली गयी...
वो रफ़ कॉपी अब मिलती ही नही... पर सोचता हूं उसे ढूंढकर खरीद लू क्योंकि बहुत समय से हिसाब नही हुआ प्यार का, गुस्से का, उन किस्से कहानियों का जिन्हें लिखकर और फिर मिटाकर हम संतुष्ट हो लिया करते थे। उन सारे खेलो को खेलेंगे जिन्हें खेलकर हम बड़े हुए.. तो चलो फिर एक बार वो रफ़ कॉपी लेते है और अपनी सारी टेंशन अपनी सारी परेशानियो को लिखकर उस पन्ने को गोचा-गोचा के फाड़ देते है और उस फ़टे हुए पन्ने को मुँह में दबाकर सबकुछ भूल जाते है। चलो एक बार फिर वो रफ़ कॉपी वाली जिंदगी जीते है...
तो ये है मेरी रफ़ कॉपी का किस्सा...
अगर आपके किस्सों में कोई इससे अलग बात हो तो comment में लिखे।🙏
Wow! 👌 Ruogh copy!!!
ReplyDeleteThank u
Deleteवाह भाई! बचपन की याद ताजा कर दिया। अद्भुत लेखनी है शुरू से अंत तक उस रफ़ कॉपी का सजीव चित्र शब्दों के माध्यम से जहन में बनता रहा।
ReplyDeleteआपकी बाते मेरी लेखनी के लिए बहुत आवश्यक है। आपकी बाते मुझे बताती है कि मेरी लिखने की कोशिशे सफल हो रही है।
DeleteOooho good lines
ReplyDeleteThanks...
DeleteExtraordinary....
ReplyDeletethat's good....
You r awesome...
DeleteGood thought... Real life experience for all...
ReplyDeleteYour comment is encouraging to me
DeleteBhut khoobsurat likha hai aapne... Pure rough copy k sfr ko jaise mn me jeevit kr diya...
ReplyDeleteBss ek lekhak ko ar kya chahiye... 🙏
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